Sunday, November 20, 2011

Ek Alfaz ki Kahani

एक अल्फाज़ की कहानी



कभी अपने दिल की गहराइयों में झाक कर देखना

तुम्हे अल्फाज़ नहीं

कुछ कहानिया मिलेंगी!



जैसे किसी "जादूगर" ने अपनी पोटली से निकाले

कुछ नए , कुछ पुराने खिलोने!



और फिर कहानियों का जैसे मौसम शुरू होंगा

कहानिया ... जिनका कोई दर्द न महसूस होता

ना ख़ुशी होती , ना गम के आँसू

सिर्फ बिंना अल्फाजों की कुछ यादें



बिना अल्फाज़ के कुछ हलकी किरणों की चम् चम्

तूम्हारी घनी सी जुल्फों की कुछ नर्म यादें



एक रिक्शा की आवाज़

एक फूल की खुशबू

एक दिन के थकान की कॉफफ़ी

और एक दिन रस्ते पर पागल की तरह चलना

जैसे हर चेहरा हैं अजनबी सा


और जब इन बिन अल्फाज़ की यादों को तुम बुन्नोंगे एक कहानी में

तुम्हे कोई पूरानी कहानी फिर याद आयेगी

और कुछ नयी लगेगी फिर वही कहानी



हालात, इंसान माहोल सब कुछ इतना बदलता हैं मेरे यार

कमबख्त इंसान के आंसू नहीं बदलते

बस रहे जाती हैं बिना अल्फाजो की कुछ यादें!

पराग शाह.. २१ नवम्बर २०१११