Friday, February 10, 2012

बेटी क्या होती है ? 10th Feb 2012


बेटी क्या होती है ?

मैं नहीं जानता..



बस मैं येः जानता हूँ
यह तोह सिर्फ एक एहसास होती हैं
एक एहसास
मेरे रूह का एक टूकडा मेरे ही घर में ही रेहता हैं

हम उसे पूजा बुलाता हूँ

लेकिन मन ही मन मैं उसीकी पूजा करता हूँ



लोग कहते हैं की बेटिया माँ के दिल का टूकडा होती हैं

मैं कहता हूँ वोह तो बाप की रूह का हिस्सा होती हैं

जब मैंने तुम्हे पहली बार अपनी बाँहों में लिया

बस उसी दिन से मैंने जान लिया की तुम

मेरी रूह का हिस्सा हो



शाम जब थकान के मारे मैं घर लौटता था

तब तुम्हारी नज़रे सिर्फ मेरे जूतों पर होती थी

बिना बताये तूम जानती थी की अब

जूते निकलते ही

बिज़नस करने वाले इंसान

जादू की पुडिया के जैसे "पापा" बन जायेगे

आज पापा का मूड कैसा हैं उस पर

उसकी हसीं निर्भर होती थी



उसने कभी हट नहीं किया

उसने कभी मुझसे कुछ माँगा नहीं

बस दिवाली के दिन पागलों की तरह शौपिंग करती थी

जैसे कल सूरज उगने ही वाला न हो!



और जब उसे हर गुरुवार के दिन

मैं खिंलोने के दुकानों में ले जाता था

उसकी नजर खिलोनो पर नहीं

मेरी नज़रों पर होती थी





जब उससे दो रेड लाइन मार्कशीट में मिली थी

वोह अपने लिए कम

मेरे लिए ज्यादा रोई थी!



सभी रिश्तेदार यही कहते थे की

मेरे बच्चे बिलकुल बिगड़ने वाले हैं



मैं उन्हें हमेशा यही कहता रहा

मेरे बच्चे कुछ अलग मिटटी के बने हैं

वोह बिगड़ेंगे नहीं

अच्छे और तृप्त इंसान बनेनेगे



मेरा रूह भी मुझे हमेशा येही कहती रही

पापा आप फ़िक्र मत करना



मैं एक दिन सारी दुनिया को दिखाऊँगी

की तुम्हारी बेटी सच में अलग मिटटी की बनी हैं



एक दफा याद हैं बेटे?

जब तुम इंग्लैंड में कुछ रोज़ थी

और तुमने हट पकड़ लि की

बस पापा अभी के अभी आ जाओं

मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती ?



वक़्त गुज़रता गया
हालात बदलते गए
कुछ ग़लतिया मुझसे हुई

कुछ गलतियाँ मेरे रूह से भी हुई

गुस्सा बढ़ते गया

रास्ते अलग हुए

मैं तुम्हे येः बता नहीं पाया

पूजा मैं सिर्फ तुम्हारे लिया जीता हूँ



येही गलती मेरी थी
कही गलती तुम्हारी थी
कुछ हम दोनों की



रात को करवट लेता हूँ अकेला

पूजा मैं वही हूँ

सिर्फ हालात बदल गए हैं

अब मैं तुम्हारी राह देखता हूँ

और अब मेरी नज़र तुम्हारी बैग पर होती हैं

तूम बैग अपने कंधो से उतार ती हों

तो मैं जानता हूँ की आज का दिन ठीक गया



येः शहर मुझे भूल गया बेटे

जो इंसान बुलंदी पर खड़ा था

वही इंसान खु-ग़र , चित पड़ा हैं



लेकिन उसकी फितरत तोह येः हैं

के वोह कभी किसीसे कुछ मांगता नहीं

पर अब जब तुम्हारे जाने के दिन आये हैं

येः बाप आज तुमसे उसकी हसी और उसकी दुनियां
बुलंदी पर ही नहीं सही,
एक छोटी से जगह तुम्हारे दिल में मांगता हैं



बस एक बार मेरी तरफ , सिर्फ एक बार,

मेरी तरफ तूम एक बाप नहीं इंसान के नज़रियें से देखो
तुम्हे फिर तुम्हारी अधूरी रूह मिल जाएगी
बस येः एहसास करो के मेरे पापा एक इंसान भी है

और फिर भगवन भी एक गलती माफ़ करते है
आज मैं ज़िन्दगी के ऐसे दो राह पर खड़ा हूँ
की बिना सहारे के मैं उठ भी नहीं पाऊँगा



लेकिन मेरा ज़मीर मांगने की इज़ाज़त नहीं देता
बस आस तुमसे रखता हूँ
की सिर्फ तूम मुझे उठाओं

और फिर हम आहिस्ता

एक नयी ज़िन्दगी की शूरूआत करेंगे

फिर वही मोड़ पर आयेंगे की

जहा हम इस दुनिया के खेल में होंगे


आज मैं तुम्हारे तरफ उन्ही नज़रों से देख रहा हूँ

जिस तरह तूम मेरी तरफ खिलोनो के दूकानो में देखा करती थी



तारीख ,नसलों को यह मिसाल दे

बेटिया पूजा जैसे होनी चाहिए

बस एक बार , बाप को सिर्फ बाप नहीं

एक इंसान के तरह भी देखो



मैंने क्या कमाया?
क्या गवाया ?

येः मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता

बस मुझे मेरी पुरानी वाली पूजा चाहिए



जो भागते मेरे पास आकर येः कहे

"पापा" हमारा रिश्ता तो आजा का नहीं

सदियों पुराना हैं



रूह-रूह से अलग नहीं होता

मैं आपकी वही पूजा
और आप मेरे वही "पापा" हों

और एक आखरी ख्वाइश हैं

उन चार कन्धों में से एक कन्धा
तुम्हारा भी होंगा
तुम और दर्शन मेरे रूह का टूकडा हो

मेरी अस्थियाँ "FLAME" के तालाब में छोड़ देना
आखरी सास और डूबती नज़रों से जब तुम्हे देखूँगा
मेरे रूह को सुकून मिलेगा


पराग शाह
फरवरी १० , २०१२

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